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क्या अभी भी जिहाद पवित्र युद्ध है?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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स्पेन के बार्सिलोना शहर में ताजा आतंकी हमले में 13 लोगों की मौत हो गयी और करीब 100 लोग घायल हैं. स्पेन के प्रधानमंत्री मारियानो रख़ॉय ने कहा है कि ये एक जिहादी हमला है. जो एक वैन द्वारा किया गया है. इस हमले की जिम्मेदारी कथित इस्लामिक स्टेट ने ली है. पिछले एक साल में यूरोप में कई शहरों में आतंकियों ने बम और बन्दूक की बजाय भीड़भाड़ वाले इलाकों में गाड़ी चढ़ाकर या दौड़ाकर घटना को अंजाम दिया है.


इस घटना में करीब 300 मीटर के दायरे में दर्जनों लोग घायल पड़े थे और कई लोग पहले ही मर चुके थे. मंजर इतना वीभत्स था कि देखकर रूह कांप उठे. घटना के प्रत्यक्षदर्शी बता रहे थे कि ऐसी घटनाओं में मदद के लिए जाने वाले लोग सारी ताकत लगा देते हैं, लेकिन मंजर देखकर भावुक होने लगते हैं. वहां रह पाना मुश्किल होने लगता है. क्या उदार मुस्लिम जगत इसे भी जिहाद कहेगा?


धार्मिक कोण से जिहाद के कई अर्थ लगाए जाते हैं, जो इस्लाम की मान्य पुस्तक द्वारा वर्णित हैं. इसका एक अर्थ अच्छा मुसलमान बनने के लिए आन्तरिक तथा बाहरी संघर्ष से भी जोड़ा जाता है! जिस तरह पिछले वर्षो में इस शब्द की आड़ में हमले किये गये, मानवता को रौंदा गया, उसे देखकर लगता है कि जिहाद शब्द इस्लाम में भले ही पवित्र माना जाता हो, लेकिन बाहरी दुनिया के लिए यह एक खौफ और दहशत का शब्द बनकर रह गया है.


यदि यहाँ भारतीय मुस्लिम को अलग रखकर प्रश्न करें कि आखिर अरबी शब्द “ जिहाद” का अर्थ क्या है? इसका एक उत्तर डेनियल पाइप्स देते हुए लिखते हैं कि सद्दाम हुसैन ने स्वयं अमेरिका के विरुद्ध जिहाद की धमकी दी थी. इससे ध्वनित होता है कि जिहाद एक “पवित्र युद्ध” है. इससे भी अधिक स्पष्ट शब्दों में कहें तो इसका अर्थ है गैर मुसलमानों द्वारा शासित राज्य क्षेत्र की कीमत पर मुस्लिम राज्य क्षेत्र का विस्तार करने का कानूनी, अनिवार्य और सांप्रदायिक प्रयास.


दूसरे शब्दों में जिहाद का उद्देश्य आज इस्लामिक आस्था का विस्तार नहीं वरन् संप्रभु मुस्लिम सत्ता का विस्तार बन गया है. चूँकि हम भारत में रहते हैं, तो जिहाद जैसे शब्दों की व्याख्या अपने ढंग या सोचने के ढंग से नहीं कर सकते, क्योंकि यहाँ शब्द धर्मनिरपेक्षता की कसौटी के अनुरूप ही फिट बैठने चाहिए. लेकिन डेनियल पाइप्स शायद इन सब पर मुखर होकर लिखते हैं कि शताब्दियों से जिहाद के दो विविध अर्थ रहे हैं, एक कट्टरपंथी और दूसरा नरमपंथी.


पहले अर्थ के अनुसार जो मुसलमान अपने मत की व्याख्या कुछ दूसरे ढंग से करते हैं, वे काफिर हैं और उनके विरुद्ध भी जिहाद छेड़ देना चाहिए. यही कारण है कि सीरिया, मिस्र, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मुसलमान भी जिहादी आक्रमण का शिकार हो रहे हैं. जिहाद का दूसरा अर्थ कुछ रहस्यवादी है, जो जिहाद की युद्ध परक कानूनी व्याख्या को अस्वीकार करता है और मुसलमानों से कहता है कि वे भौतिक विषयों से स्वयं को हटाकर आध्यात्मिक गहराई प्राप्त करने का प्रयास करें.


विश्व के आतंकी घटनाक्रम पर देखें, तो आज जिहाद विश्व में आतंकवाद का सबसे बडा स्रोत बन चुका है. इसके विविध नाम से संगठन बन चुके है. आधुनिक हथियारों से और विभिन्न तरीको से जिहाद के सैनिक बर्बरता मचाये हुए हैं. मतलब जहाँ जैसे बस चले. पिछले वर्ष ही फ्रांस के नीस में जुलाई 2016 में ट्यूनीशियाई मूल के मोहम्मद लावेइज बूहलल ने आतिशबाजी देखने के लिए पहुंची भीड़ पर एक लॉरी से हमला किया, जिसमें 86 लोगों की मौत हो गई थी.


उसी दौरान जर्मनी के बर्लिन में ट्यूनीशिया के अनीस अम्री ने क्रिसमस मार्केट में एक ट्रक दौड़ा दिया था. इस हमले में 12 लोगों की मौत हो गई थी. थोड़ा आगे बढ़ें, तो इस वर्ष ही लंदन में तीन जिहादियों ने लंदन ब्रिज पर लोगों पर वैन दौड़ा दी और कई लोगों पर चाकू से हमला किया. वेस्टमिनस्टर ब्रिज की घटना हो या स्टॉकहोम, स्वीडन में एक आतंकी का एक डिपार्टमेन्ट स्टोर में लॉरी घुसाकर चार लोगों को मारना, उपरोक्त सभी घटनाएँ जिहाद के नाम पर की गयी हैं.


डेनियल लिखते हैं कि सन् 632 में मोहम्मद की मृत्यु के समय तक मुसलमान अरब प्रायद्वीप के बहुत बड़े क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित कर सके थे. इसी भाव के कारण मोहम्मद की मृत्यु की एक शताब्दी के पश्चात् उन्होंने अफगानिस्तान से स्पेन तक का क्षेत्र जीत लिया था. इसके बाद जिहाद ने मुसलमानों को भारत, सूडान, अनातोलिया और बाल्कन जैसे क्षेत्रों को जीतने के लिए प्रेरित किया. इससे प्रेरणा लेकर कुछ स्वयंभू जिहादी संगठनों ने संपूर्ण विश्व में आतंकवाद का अभियान चला रखा है. पिछले 1400 वर्षों के जिहाद के टकराव और मानवीय यातना के इतिहास के बाद भी अनेक इस्लामी दावा करते हैं कि जिहाद केवल रक्षात्मक युद्ध की आज्ञा देता है या फिर ये पूरी तरह अहिंसक है .


जिहाद को परिभाषित करते हुए कुछ मुसलमान कहते हैं कि एक बेहतर छात्र बनना, एक बेहतर साथी बनना, एक बेहतर व्यावसायी सहयोगी बनना और इन सबसे ऊपर अपने क्रोध को काबू में रखना. किन्तु इस परिभाषा को एक काल्पनिक सच्चाई के रूप में अनुभव करने मात्र से ऐसा नहीं हो जाएगा. इसके विपरीत जिहाद के वास्तविक स्वरूप से आँखें मूंद लेना आत्मचिंतन और पुनर्व्याख्या के किसी भी गंभीर प्रयास को बाधित करने जैसा है.


जिहाद की ऐतिहासिक भूमिका को स्वीकार करते हुए आतंकवाद, विजय और गुलामी से परे भी एक रास्ता है और वह है जिहाद से पीड़ित लोगों से माफी माँगकर जिहाद के अहिंसक इस्लामी आधार को विकसित कर हिंसक जिहाद पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाए. दुर्भाग्यवश इस माहौल से बाहर आने की कोई प्रक्रिया नहीं चल रही है. हिंसक जिहाद तब तक चलता रहेगा, जब तक इसे किसी उच्च स्तरीय सैन्य शक्ति से दबा नहीं दिया जाता. जिहाद को पराजित करने के बाद ही उदारवादी मुसलमानों की आवाज सामने आएगी और तभी इस्लाम को आधुनिक बनाने का दुरूह कार्य आरंभ हो सकेगा.

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