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गोरखपुर हादसे का जिम्मेदार कौन?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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कल-परसों हम अपनी स्वतंत्रता का 70वां जश्न मना रहे थे. लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक बार फिर अच्छा भाषण दिया, किन्तु यदि देश की आजादी के 70 वर्ष बाद भी हम अपने नागरिकों को इलाज और दवा समय पर उपलब्ध न करा पाएं, तो इसका मतलब यह कि आजादी अभी अधूरी है. हालाँकि दुख-सुख तो जीवन भर का मसला है, इनसे किसी के काम में बाधा तो नहीं पड़नी चाहिए. बस हम ख़ुद को यही कहते रह जाते हैं कि इतने बड़े देश में अब किस-किस घटना पर रोएं. हमारे सिस्टम में छोटी-छोटी कमियां रस्सी की तरह बुनते-बुनते इतना बड़ा रस्सा बन जाती हैं कि इस रस्से से किसी को भी फांसी दी जा सकती है. खुद की तस्सली के लिए कितने बड़े भी कारण गढ़ लें, सब कारण इन हत्यारों के काम ही आते है.


BRD Hospital collage


गोरखपुर का बीआरडी अस्पताल इस महीने शायद इसी वजह से सुर्खियों में आया है. 30 से ज्यादा बच्चों समेत सिस्टम की नाकामयाबी करीब 60 लोगों को लील गयी. विपक्ष की गाज सत्ता पक्ष पर और सत्ता की गाज कुछ अधिकारियों पर गिरकर कुछ दिन बाद लोग मामले को भूल जायेंगे. सब कुछ हो जाएगा, पर उनकी जिंदगी नहीं लौटेगी, जिन्होंने इस लापरवाही में अपने लाडलों को खोया है. अब कुछ भी जांच करवा लें, लेकिन क्या सरकार उस मां की खुशियां लौटा पाएगी, जिसने अपना बच्चा खोया है. नहीं न?


किसी का अकेला लाल अस्पताल प्रसाशन की लापरवाही से तो किसी के जुड़वां बच्चे अब इस दुनिया में नहीं रहे. एक बार फिर साबित हुआ कि समाज हिंसा या प्राकृतिक आपदा से ही नहीं, बल्कि लापरवाही के इंजेक्शन से भी मरता है. कुछ बड़े अखबारों में तो यहाँ तक लिखा गया कि पहले माता-पिता को ख़ून, दवाओं और रूई के लिए दौड़ना पड़ा, अब उन्हें पोस्टमॉर्टम के लिए दौड़ना पड़ रहा है. अब इंतजार है तो बस इसका कि अपने बच्चों के डेथ सर्टिफिकेट समय पर मिल जायें, ताकि वे साबित कर सकें कि इस अस्पताल प्रसाशन की इस संवेदनहीनता में हमने ही अपने बच्चे खोये हैं.


योगी सरकार के आक्रामक रुख के कारण गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद कार्रवाई शुरू हो गई है. बीआरडी अस्पताल के सुपरिटेंडेंट और वाइस प्रिंसिपल डॉक्टर कफील खान को हटा दिया गया है. कफील को अस्पताल की सभी ड्यूटी से हटा दिया गया है. डॉक्‍टर कफील बीआरडी मेडिकल कॉलेज के इन्सेफेलाइटिस डिपार्टमेंट के चीफ नोडल ऑफिसर हैं, लेकिन वे मेडिकल कॉलेज से ज्यादा अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए जाने जाते हैं.


इस बड़े हादसे के बाद जो सच सामने आ रहे हैं, वो हिला देने वाले हैं ही साथ में यह भी सोचने को मजबूर कर रहे हैं कि एक छोटे से सरकारी क्लीनिक से लेकर ऊपर बड़े अस्तपालों तक किस कदर भ्रष्टाचार है. शुरुआती जाँच में मीडिया के हवाले से आरोप है कि कफील खान अस्पताल से ऑक्सीजन सिलेंडर चुराकर अपने निजी क्लीनिक पर इस्तेमाल किया करते थे। जानकारी के मुताबिक, कफील और प्रिंसिपल राजीव मिश्रा के बीच गहरी साठगांठ थी और दोनों इस हादसे के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. हालाँकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भरोसा दिलाया है कि इस अपराध में लिप्त पाए गये लोगों के लिए सजा एक मिसाल बनेगी.


मगर सजा से बड़ा सवाल यह है कि आजादी के 70 वर्षों बाद भी अगर मासूम बच्चों को सिर्फ इसलिए जान गवांनी पड़ती है कि वहाँ अच्छा अस्पताल और अच्छे डॉक्टर नहीं हैं, तो यह तंत्र की विफलता नहीं तो क्या है? ऐसा नहीं है कि देश में अस्तपालों की कमी है. आपको हर चंद कदम की दूरी पर एक-दो निजी नर्सिंग होम जरूर दिखाई देंगे, किन्तु महंगी फीस और महंगे इलाज के कारण अधिकांश लोग इनका खर्चा नहीं उठा पाते.


रही बात सरकारी अस्पताल की, तो वहां जाना और इलाज कराना इस से बड़ी चुनौती है. सरकारी अस्पताल में जाने से पहले यदि अस्पताल में आपका कोई जानकर नहीं है, तो इलाज से पहले लम्बी-लम्बी लाइनें आपका इंतजार कर रही होती हैं. अस्पताल में जाकर डॉक्टर तक पहुंचना सिर्फ आशा और ईश्वर के भरोसे ही होता है. इन 70 वर्षों में भारत ने खूब तरक्की की. कॉमन वेल्थ जैसे गेम भी हुए और 2जी जैसे बड़े घोटाले भी. हर वर्ष आईपीएल में विदेशी खिलाड़ियों पर ऊंची बोलियां भी लगती हैं, जिसमें पैसा पानी की तरह बहाया जाता है. इस आपाधापी में देश का वास्तविक विकास कहीं पीछे छूट गया. स्कूल, काॅलेज और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं भी जनसंख्या के हिसाब से नहीं बढ़ सकीं. शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों का विकास बहुत धीमी गति से हुआ.


प्रधानमंत्री मोदी ने 2 साल पहले अपने भाषण में कहा था कि यह बात सही है कि देश के सामने समस्याएं अनेक हैं, लेकिन हम ये न भूलें कि अगर समस्याएं हैं, तो इस देश के पास सामर्थ्य भी है और जब हम सामर्थ्य की शक्ति को लेकर चलते हैं, तो समस्याओं से समाधान के रास्ते भी मिल जाते हैं. मगर आज सवाल इससे बड़ा यह है कि तंत्र की विफलता बदहाल ब्यवस्था का खामियाजा भुगत रहे आम आदमी के साथ ऐसा क्यों होता है. आखिर गोरखपुर जैसी इन घटनाओं में हुई मौतों की जिम्मेदारी किसकी बनती है, यह भी तय होना जरूरी है?

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