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कमजोर होते इंसानी रिश्ते

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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मानव समाज में ऐसा कोई रिश्ता नहीं होता, जिसमे तकरार और छोटी-मोटी बातें नहीं होतीं। लेकिन वही छोटी-छोटी बातें जब बड़े तकरार का रूप ले लेती हैं, तब आप जिंदगी में कितने ही आगे क्यों न बढ़ जाएं, कहीं न कहीं दिल के कोने में एक याद हमेशा बसती रहेगी। जो हमेशा आपसे कहेगी कि एक मौका उस रिश्ते को बचाने के लिए दिया जा सकता था। जीवन में कभी-न-कभी वह घड़ी आती है, जब कई माता-पिता खुद की देखभाल करने के काबिल नहीं रहते और उन्हें मदद की जरूरत पड़ती है। यहाँ तक कि कई बार तो वे अपने दिल में नाराजगी भी पालने लगते हैं। और-तो-और, कभी-कभी बुजुर्ग मां या पिता ठेस पहुंचाने वाली बातें कह देते हैं. पर क्या हम सिर्फ इस बात से उनसे किनारा करें कि उन्हें गुस्सा आया या हमें ठेस पहुंची?

old man

बचपन में हम कई बार रूठते हैं। माता-पिता हमें मनाते ही नहीं, बल्कि हमारी जिद भी पूरी करते हैं। इसी तरह कुछ अनबन भी हो, तो हमें दोबारा उनकी तरफ कदम बढ़ाने चाहिए। ऐसे में अगर आपसे कुछ गलती हुई है, तो उसे स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं है। माता-पिता हैं, जितनी जल्दी गुस्सा होते हैं, उतनी ही जल्दी माफ भी करते हैं। ये उम्र ऐसा पड़ाव होता है, जहां भावनात्मक रूप से सहारे की सबसे ज्‍यादा जरूरत होती है।

भले ही तेजी से गुजरते समय ने हाथों में आईफोन दिए हों, लेकिन उन्ही हाथों से रिश्ते छीन लिए हैं और इस उपभोक्‍तावाद का सबसे ज्यादा असर इंसानी रिश्तों पर पड़ा है। इन्हीं बदले हुए हालात का सबसे बड़ा दंश झेल रहे हैं हमारे बुजुर्ग। उन्हें आज के इस आधुनिक समाज में कई तरह की परेशानियों को झेलना पड़ रहा है। दिल्ली के भजनपुरा इलाके की रहने वाली सत्यवती की उम्र भी अब उन पर हावी होने लगी है। उनका शरीर कमजोर होता चला जा रहा है। सत्यवती अपना सही पता नहीं बतातीं। उन्‍हें डर है कि कहीं उनके तीन बेटे उन पर हाथ न उठा दें। जिल्लत की जिन्दगी से तंग आकर सत्यवती ने एक वृद्धाश्रम में पनाह ली है। ऐसे न जाने कितने बुजुर्ग बसेरा ढूंढ रहे हैं, जहां वे भावनाओं के साथ पेट भर सकें। ऐसे में जब उन्हें घर पर ही देखभाल की जरूरत है, तो उन्हें जुल्म का शिकार होना पड़ रहा है।  यह जुल्म कोई और नहीं, बल्कि वे लोग कर रहे हैं, जिनसे उनका खून का रिश्ता है। बड़े शहरों की अगर बात की जाए, तो सर्वेक्षण बताते हैं कि बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के मामलों में दिल्ली के हालात बेहतर नहीं हैं। देवीराम हनुमान मंदिर के आसपास आसानी से दिख जाते हैं। चेहरे पर पड़ी झुर्रियां, आँखों में अजीब सी खामोशी लिए वे कहते हैं कि मुझ पर यह सब कुछ तब आ पड़ा है, जब मैं कुछ झेलने के लायक ही नहीं बचा हूं। शरीर कमजोर हो गया है, ऐसे में मुझे घर से निकाल दिया गया। मैं कहाँ जाऊं। बस दिल की एक ही तमन्ना है कि मेरा बेटा किसी दिन मुझसे बोले “पापा चलो अब घर चलें”।

इस तरह की पीड़ा समेटे अकेले राजधानी की सड़कों और वृद्धाश्रमों में आपको न जाने कितने लोग मिल जायेंगे, जिन्हें अब इंसानी रिश्तों की बात सिर्फ एक मजाक लगती है। वे भले ही खुलकर कुछ नहीं बताते, लेकिन अन्दर-अन्दर ही घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं। वे लोग ख़ुशक़िस्मत हैं, जिन्हें कहीं किसी का सहारा मिल सका है। मगर जिन लोगों को यह सहारा नहीं मिला, उन्हें “बस बहुत हो गया” कहने की जरूरत है। वे लोग बड़ी तकलीफदेह जिन्दगी गुजार रहे हैं। इनमें से कुछ ऐसे हैं, जो अपने ही बच्चों के यहाँ नौकरों की तरह रहने को मजबूर हैं। शिकायत करें भी तो किसकी? इन्हें तो अपनों ने सताया है। वो अपने जिन्होंने इनकी कोख से जन्म लिया है, इसलिए इनकी तकलीफ बहुत ज्यादा है, जो शायद कोई दूसरा महसूस न कर सके। हालांकि बुजुर्गों की अनदेखी करने वाली औलादों के ख़िलाफ सरकार ने वर्ष 2012 में सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 को नए सिरे से लागू किया, जिसके तहत 60 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को “सीनियर सिटिजन” माना है। इस एक्ट में सजा का प्रावधान रखा गया पर जुल्म सहने के बावजूद बुजुर्ग अपने बच्चों के ख़िलाफ शिकायत दर्ज कराना नहीं चाहते। इस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार औलादों को अपने मां-पिता को आर्थिंक सहायता देनी होती है।

कई बार अपने प्यारे माता-पिता को ढलती उम्र में होने वाली तकलीफें झेलते देखकर हमें बहुत दुख होता है। उनका खयाल रखने वाले कई बच्चे यह देखकर कभी-कभी उदास हो जाते हैं। परेशान हो जाते हैं। खुद को दोषी महसूस करने लगते हैं। उन्हें चिंता होती है। रह-रहकर गुस्सा आता है। भले ही आप अपने बुजुर्ग माता-पिता से दूर रहते हों, फिर भी आपको तय करना चाहिए कि माता-पिता को रोजाना किस तरह की देखभाल की जरूरत है। अगर आपका घर उनके घर के पास नहीं है, तो सप्ताह में कम से कम एक बार उनसे बात जरूर करें। हालांकि उम्र ढलने से होने वाली समस्याओं के बारे में बातचीत करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन जब परिवार के सभी सदस्य मिलकर चर्चा करते हैं और पहले से अच्छी योजना बनाते हैं, बुजुर्गों की सेहत व उनके रहन-सहन से जुड़े फैसले लेते हैं, तब वे सही चुनाव करने के लिए और भी अच्छी तरह तैयार होते हैं। हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि कभी-न-कभी हमें बुढ़ापे में आने वाली तकलीफों का सामना करना ही पड़ेगा। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि एक परिवार के तौर पर हम इनका सामना करने के लिए तैयारी करें। इन जिम्मेदारियों को पूरा करते समय आप तरह-तरह की भावनाओं से गुजरें। बुजुर्गों से बुरा वर्ताव करते वक्त एक बार जरूर सोचें कि कल हम भी बुजुर्ग होंगे, तो क्या इस व्यवहार के लिए हम तैयार होंगे?

लेख-दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा

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