Menu
blogid : 23256 postid : 1335007

हुर्रियत की जड़ों पर प्रहार

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
  • 289 Posts
  • 64 Comments

आखिर कौन है हुर्रियत कांफ्रेंस कोई राजनैतिक दल, संगठन या समाजसेवी संस्था.? अक्सर लोग इस सवाल को राजनीति और मीडिया की लालटेन के नीचे बैठकर उसके उजाले में इसका हल ढूंढते है, आखिर कैसे अलगाव और आजादी के नाम कश्मीर का वैचारिक आतंकी संगठन भारत जैसे एक विशाल राष्ट्र के लोकतंत्र उसके संविधान को एक लम्बे अरसे से चुनोती दे रहा है? हुर्रियत कांफ्रेंस की जड़ों  को समझना हो तो कश्मीर में क्या कैसे कब घटा ये याद करना होगा. साल 1988-89 के बीच कश्मीर की आजादी को लेकर जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट या जेकेएलएफ ने कश्मीर की बर्फीली वादियों में बारूद की जो गर्माहट पैदा की, जो जल्दी ही आग बनकर वहां के हरे भरे चिनार और भारत की सम्प्रभुता को झुलसाने लगी थी. आग की इस तपिश से जब कश्मीर का हिन्दू समुदाय झुलसने लगा तब पड़ोसी देश पकिस्तान ने हाथ तापने शुरू किए. तब इसे दुनिया ने भी पहली महसूस किया.

हुआ यह कि जम्मूकश्मीर लिबरेशन फ्रंट के कुछ नौजवानों ने कश्मीर में आजादी के नाम पर भारतीय सुरक्षा बलों से लड़ना शुरू किया शुरू में सेना को इन लड़ाकों को पहचानने में दिक्कत पेश आई. फिर अचानक एक के बाद एक जेकेएलएफ के लड़ाके मारे जाने लगे. तब इन लोगों ने कश्मीरी पंडितों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया भारतीय सुरक्षा बल बेहद मुस्तेदी से अतिवादियों के सफाए में लगे थे. इससे पहले की जेकेएलएफ के झंडे तले जमा हुई कश्मीरी जनता अपने घरों को लौटती इस्लामी-अतिवादियों के गिरोहों ने उनका स्थान ले लिया. इन्हें पकिस्तान की आईएसआई का समर्थन हासिल था. इसी स्थिति के गर्भ से हुर्रियत का जन्म होता है, जिसने अलगाववाद के लिए लड़ रहे अलग-अलग संगठनों को एक परचम तले इकठ्ठा किया. नाम दिया ‘ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस’ जिसके बाद भारत सरकार का रुख नरम हुआ और नतीजा  89 से 93 यानी पांच वर्षों में लापरवाहियों की खाद से ताकत हासिल करता ये छोटा सा पौधा आज 28 वर्षों में एक ऐसा दरख्त बन चुका है, जिसे उखाड़ पाना भारत सरकार के लिए सर दर्द बन चूका है.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी, ईडी सहित कश्मीर की पुलिस अलगाववादियों को मिलने वाली आर्थिक मदद की जांच में जुटे हैं. साथ ही ये सभी एजेंसियां मिलकर खुफिया एजेंसी को इस मामले की जांच में पूरी मदद कर रही हैं. अधिकारी बता रहे है कि जम्मू-कश्मीर में शांति के माहौल को बिगाड़ने के लिए सीमापार से इन अलगाववादियों को बड़ी आर्थिक मदद मिलती है. ऐसे में वादियों की फिजा को बिगाड़ने के लिए इस्तेमाल हो रहे पैसे की जांच इस सरकार का मुख्य एजेंडा है.

श्रीनगर, जम्मू, दिल्ली और हरियाणा में कई जगहों पर पड़े राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी एनआईए के छापों ने कश्मीर में बहस छेड़ दी है. कुछ लोगों का मानना है कि इस कदम से सरकार को “चरमपंथियों को मिलने वाले फंड” के स्रोतों के बारे में जानकारी मिलेगी और वो उन्हें धर-दबोचेगी. एनआईए के सूत्रों की मानें तो देश में आने वाला यह पैसा कई आतंकी संगठनों सहित अलगाववादियों तक पहुंचता है. हुर्रियत कांफ्रेंस, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट, इस्लामिक स्टूडेंट फ्रंट, हिजबुल मुजाहिद्दीन, जैश ए मुजाहिद्दीन, जमीयतुल मुजाहिद्दीन सहित कई संगठनों को यह पैसा पहुंचाया जाता है.

मूल-प्रश्न यह भी है कि आतंक का यह पेड़ इतना फला-फुला कैसे तो इसे समझने के लिए जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला का यह बयान काफी कि हुर्रियत वालों! हम तुम्हारे साथ हैं, एक हो जाओ, आगे बढ़ो, हमें अपना दुश्मन मत समझो” इससे साफ हो जाता है कि देश के अन्दर अन्य आतंकी संगठनों नक्सलवाद, माओ, बोडो आदि की तरह हुर्रियत को भी पर्दे के पीछे से राजनितिक संरक्षण प्राप्त होना नकारा नहीं जा सकता. सच कहे तो कश्मीर का समाधान न हुर्रियत चाहती न कश्मीर पर हर समय आंसू बहाने वाला पाकिस्तान बस इन लोगों को अपने-अपने हिस्से का कश्मीर पर चाहिए.

भारतीय राजनीति गलत या सही रही इस बात को अलग रखकर चर्चा करे तो आज सरकार जिन भी तेवरों के साथ आगे बढ़ रही है, इससे कश्मीर में डूबते शिकारे को बचाने में एक आशा की किरण नजर आ रही है. अगर बदलाव का यह शिकारा भारत सरकार अपनी ओर खींचने में कामयाब हुई तो पथराव करने तक को रोजगार की तरह देखने पर मजबूर कश्मीरी, अपने लीडरों के मुख पर खुद तमाचा जड़ देंगे.

राजीव चौधरी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh