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आखिर कब तक यह खेल चलता रहेगा?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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आतंकी घुस आए हैं, इन्हें ढेर करके दोबारा कॉल करूंगा. यह बात 32 वर्षीय मेजर सतीश दहिया ने अपने पिता अचल सिंह को कही तो उस बाप ने सपने में सोचा भी नहीं होगा कि शाम को इसके बाद जो कॉल आएगी वह बेटे की शहादत की खबर लेकर आएगी. देश का एक लाल फिर भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर गया. पीछे छोड़ गया तीन वर्षीय बेटी प्रिया, बूढ़े माता-पिता व आँखों में सपनों की यादों के आंसू लिए पत्नी सुजाता को.  मेजर दहिया की संतान अब उन्हें कभी नहीं देख पाएगी. क्योंकि मेजर ने हमारे भविष्य के लिए अपनी जान गंवा दी.

मेजर सतीश दहिया को तीन गोलियां लगी थीं जिसके कारण वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे. सेना की गाड़ी जब उनको बेस अस्पताल ले जाने के लिए चलने लगी तो स्थानीय लोगों ने सेना की गाड़ी पर पथराव करके उनका रास्ता रोके रखा. इसके कारण ज्यादा खून निकलने की वजह से वे शहीद हो गए थे

सभी को ज्ञात है कि यह स्थानीय पत्थरबाज कौन है? यदि इन्हें देश के दुश्मन कहे तो सेकुलर ब्रिगेड नाखुश. यदि इन पर पेलेट गन से वार करे तो कथित मानवाधिकारी दुखी. इन पर लाठी बरसायें तो मीडिया के कलेजे पर वार होता है. ये हर रोज पत्थर बरसायें, सेना के जवानों पर हमला करे तो यह आजादी के परवाने यदि इन पर कारवाही हो तो कश्मीर की फिजा बिगडती बताई जाती है. जब घायल मेजर सतीश को अस्पताल ले जाया जा रहा था, तब कश्मीरी पत्थर मार रहे थे. किसी भी मानवाधिकार कार्यकर्ता ने इस बात पर आपत्ति नहीं जताई है क्यों.?

एक तरफ से भीड़ सेना के जवानों पर पथराव कर रही थी तो दूसरी ओर आतंकी. पथराव को झेलते हुए भी जांबाज सैनिकों ने आतंकियों से लोहा लेना जारी रखा. मेजर सतीश दहिया साथियों के साथ आतंकवादियों को ललकारते हुए आगे बढ़ रहे थे. इसी दौरान दो आतंकी फायरिंग करते हुए भागे. इनमें आतंकियों की एक गोली मेजर दहिया के सीने में आ लगी. इसके बावजूद सतीश दहिया बगैर लडखड़ाए आतंकियों को खदेड़ते हुए साथियों के साथ आगे बढ़ते रहे. भीड़ का हो हल्ला भी जारी था. आतंकियों की दो और गोलियां मेजर के दहिया के सीने में आ लगी और मेजर दहिया अंतिम सांस तक अदम्य साहस का परिचय देते हुए मातृभूमि के लिए शहीद हो गए.

यह एक बड़ा सवाल है कि देश भर में अपनी ड्यूटी के दौरान वतन की रक्षा करते हुए शहीद होने वाले इन बहादुरों पर देश को गर्व तो है, पर इन्हें हम कब तक यूँ ही खोते रहेगें? बीते कई बरसों से आतंकवाद से निपटना भारत में सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है. एक तरफ आंतकी तो दूसरी और पत्थरबाज जिन्हें मासूम कश्मीरी कहा जाता है. एक तरफ आतंकी तो दूसरी तरफ पाकिस्तान परस्त अलगाववादी, एक तरफ देश के दुश्मन तो दूसरी तरफ कथित धर्मनिरपेक्ष नेता जो सेना को इंसानियत का पाठ पढ़ा रहे है और इन सबके बीच बीच में हमारे जवान आखिर कोई तो बताये कि कब तक यह खेल चलता रहेगा??

ऐसा नहीं की ये पहली बार हुआ है, निरंतर ही ये होता रहा है या ये कहूं की लगभग रोजाना ही होता है बस आप और हम इस सत्य से अनभिज्ञ रह जाते हैं. मुझे कभी-कभी लगता है कि हम न जाने सदैव कितने मुद्दों पर बात और बहस करने को उतारू रहते हैं पर शायद ही कभी किसी शहीद को लेकर बात करते होंगे!! शायद नहीं क्योंकि हमारे हीरों तो वो हो है जो अभी सतीत्व रक्षा करने वाली पधमिनी को खिलजी जैसे चोर की प्रेमिका बता रहे थे. सबने देखी होगी अभी रईस फिल्म किस तरह गुंडों को हीरो दिखाया जाता है. हम तो उन्हें  हीरों मानते है हैं न जिनकी पत्नी दादरी में एक अखलाक की मौत से मुम्बई में बैठी अपने लिए सुरक्षित देश खोजने की बात करती है? हम क्यों इन वीर सैनिको की बात करें. हमारे हीरो तो वो है जो इस देश में फिर तैमुर पैदा कर रहे है.  पर्दों के हीरो को देख उनके साथ एक तस्वीर को मर मिटते हैं पर जो जवान हमारी और आपकी जिन्दगी के खुशी के लिए खुद को मिटा देते उसके बारे में कोई चर्चा नहीं.

पर्दे के हीरो के पक्ष में सब राजनेता कूद पड़ते है सारी फिल्म इंडस्ट्री सामने आ जाती है लेकिन सब देश के सच्चे हीरो इन जवानों की बात आती है तो सब इधर-उधर की बात करने लगते है. आज गम में डूबी मेजर दहिया की पत्नी सुजाता कभी खड़ी होती तो कभी बेहोश लेकिन फिर भी डबडबाई आँखों से गर्व के साथ कह रही है कि बेटी को सेना का बड़ा अफसर बनाकर पति का सपना जरूर पूरा करूंगी. वो एक देशभक्त की पत्नी है वो भारत माता के सच्चे सपूत की पत्नी है. वो अपना वादा जरुर पूरा करेगी लेकिन हम कल फिर इन फर्जी हीरो के लिए सिनेमा हाल पर लाइन में खड़े होंगे. कल जेएनयू में फिर भारत माता के टुकड़े करने की बात हो रही होगी. कल फिर कोई कन्हेया कुमार सेना के जवानों को बलात्कारी कह रहा होगा. कल फिर इन पत्थरबाजो, घायल सैनिको के रास्ता रोकने वालों पर जब सेना कारवाही कर रही होगी तो राजनेता उन्हें मासूम कश्मीरी कह कर वोट बटोर रहे होंगे. कल फिर हम लोग इन नेताओं की पार्टी के झंडे पकडे खड़े होंगे. मेजर सतीश दहिया अपने माँ-बाप की इकलोती संतान थे. लेकिन बूढ़े बाप को बेटे की सहादत पर फक्र है. पर कल हम इनका नाम भूल चुके होंगे. अब भी समय है खुद से पूछने का कि क्या हम सच में इन शहीद हुए जवानों के आहुति को साकार कर रहे हैं जो सरहद और देश के लिए जंगलो, पहाड़ो में दुश्मन से लड़ते मर जाते हैं.? राजीव चौधरी

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