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वैश्विक शरणार्थी, संकट या षड्यंत्र..?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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शरणार्थी समस्या किसी देश लिए आबादी आक्रमण के समान है, जिसमें लोग हथियारों के बजाय आंसू लेकर आते है. आज भारत समेत पूरा विश्व शरणार्थी संकट से जूझ रहा है, इस कड़ी में सीरिया, बांग्लादेश, इराक, अफगानिस्तान और म्यांमार बड़े शरणार्थी निर्यातक देश तो भारत, कनाडा, जर्मनी समेत यूरोप के बड़े भूभाग के कई देश शरणार्थी आयातक बनते जा रहे है. संकट के इस समय में विश्व के उदारवादी नेताओं को समस्या तो दिखाई दे रही लेकिन आने इससे वाला खतरा कोई नहीं देख रहा है. यदि इस विषय पर थोड़ी देर मानवीय द्रष्टिकोण किनारे पर रख दिया जाये तो इस कथन को कोई नहीं नकार सकता कि धर्म और राजनीति इस्लाम रुपी सिक्के के दो पहलू हैं. यह कथन आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था. यदि मुसलमान अपने धर्मप्रेरित राजनैतिक उद्देश्यों के लिये इन देशों घुसपैठ कर रहे हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि इस्लाम वस्तुतरू प्रारम्भ से ही धर्म की आड़ में एक राजनैतिक आन्दोलन रहा  है.

साल 1990 में इराक ने जब कुवैत पर हमला किया था, तब कुवैत के हजारों विस्थापितों को पनाह देने के लिए कई दूसरे खाड़ी देश आगे आए थे. लेकिन बीते दशकों के बाद यह कहानी उलट हो गयी. पिछले कुछ समय से सीरिया से निकले एक भी शरणार्थी को पनाह देने के लिए आर्थिक रूप से सम्पन्न कतर, कुवैत, बहरीन, सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात आगे नहीं आये. जबकि सउदी अरब जर्मनी में गये शरणार्थियों को मस्जिदों के लिए धन देने को तो तैयार है लेकिन उन्हें अपनाने को नहीं.

अभी हाल ही में अमेरिका के नवनियुक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा सीरिया समेत सात मुस्लिम देशों के नागरिको पर प्रतिबंध लगाया गया जिसकी अमेरिका समेत समस्त उदारवादियों द्वारा आलोचना की गयी. ट्रम्प के इस कदम की आलोचना करते हुए कनाडा द्वारा अपनी सीमा मुस्लिम शरणार्थियों के लिए खोली गयी. समय रहते लोगों को सोचना होगा कि आखिर क्यों अरब देश सिर्फ सुन्नी हितों की रक्षा पर बनाई रणनीति पर चल रहे है और क्यों  दूसरी ओर शिया बहुल ईरान, शिया गुटों के समर्थन की नीति पर चल रहा है? आखिर यूरोप और भारत में एक मुस्लिम को कुछ शिकायत होने एक इस्लाम की बात करने वाले मुसलमान खाड़ी देशों के इस दोहरे रवैये पर खामोश क्यों रहते है? इस तरह इन हितों की पैरवी करने वालों के बीच टकराव से सवाल खड़ा हो जाता है कि ये शरणार्थी संकट है षड्यंत्र? इस समस्या से उत्पन्न खतरे को जब तक नहीं भांपा जा सकता तब तक पूरा विश्व अपनी आँखे ऊपर कर आने वाले खतरे को नहीं देखेगा. इस मामले से सवाल यह खड़ा होता है कि पुरे विश्व में फैल रहे इस्लामिक शरणार्थी अपने लिए सुरक्षित क्षेत्र तलाश रहे है या धर्म के लिए राजनैतिक क्षेत्रफल?

यदि इतिहास पर नजर डाली जाये तो मुस्लिम शरणार्थियों का यह नया युग नहीं है प्राचीन भारत का इतिहास इसके काफी घाव समेटे हुए है. राजा दाहिर ने अपने महल में इमाम हुसैन के अनुयायी मुहम्मद बिन अल्लाफी को  उनके समर्थको समेत शरण दी थी. जिसका खामियाजा भारत को सदियों तक भुगतना पड़ा था.अब एक बार फिर बांग्लादेश विश्व के उन सबसे बड़े देशों में है जो लगातार शरणार्थियों को पैदा कर रहे हैं. इसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ रहा है. बांग्लादेश की ओर से जारी अनियंत्रित और अवैध घुसपैठ ने पिछले कुछ दशकों से भारत के खिलाफ जनसांख्यिकीय हमले का रूप धारण कर लिया है.

इस प्रसंग में देखे तो स्वयं बांग्लादेश ने 1,92,274 रोहिंगा मुस्लिमों को अपने देश से निकाल बाहर किया. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की अवमानना कर म्यंमार जैसे छोटे देश ने भी अपने यहाँ से हजारों  रोहिंगा मुस्लिमों को बाहर किया जिन्हें भारत की ओर से शरण देते हुए जम्मू व दिल्ली में बसाया जा रहा है. सूत्रों के अनुसार प्रांरभिक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 1.3 लाख रोहिंगा मुसलमान मौजूद है. चिंता की बात ये भी है कि रोहिंगा मुसलमानों की संख्या कश्मीर में तेजी से बढ़ रही है और यह लोग कश्मीरी लड़कियों से शादी  करके जिस तरह से कश्मीर में बस रहे हैं, वो आगे चलकर खतरनाक साबित हो सकता है.

ऐसी स्थिति में शरणार्थी समस्या कितनी जटिल, भयानक और खतरनाक है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.जब समस्या बड़ी, विकराल और खतरनाक होती है तब उसके निदान, उसके समाधान के तरीके छोटे नहीं होने चाहिएं, बल्कि गंभीर होने चाहिएं उसके समाधान के तरीके कोई तात्कालिकता में  नहीं खोजे जाने चाहिएं, बल्कि दीर्घकालिकता में खोजे जाने चाहिएं. तात्कालिकता व भावनात्मकता में खोजे गए समाधान टिकाऊ नहीं होते हैं. मुस्लिम शरणार्थियों की आबादी के आने से शरण देने वाले देशों कितनी भयंकर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा यह अभी सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है. आज भारत और यूरोप में दो तरह के शरणार्थी आ रहे हैं- एक  वे जो पीड़ित हैं और दूसरे वे हैं जो कट्टरपंथी हैं. जो अपने लिए जगह तलाश कर रहे है एक पास आंसू है तो दुसरे के पास हिंसक विचाधारा. बस उदारवादी विश्व समुदाय को अब समझना होगा कि यह वाकई संकट है या षड्यंत्र

राजीव चौधरी

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