Menu
blogid : 23256 postid : 1312546

बंटवारे की नई कथा

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
  • 289 Posts
  • 64 Comments

वैसे देखा जाये तो भारतीय राजनीतक महत्वकांक्षा देश के अन्दर छोटे बड़े हजारों मुद्दों को जन्म देने का कार्य कर रही है। जिस कारण कुछ लोग तो भारत को विवादों का देश भी कहने से गुरेज नहीं करते हैं। अभी पिछले दिनों ही अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सबसे बड़े सभागार केनेडी हॉल में संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण देने की बात को नकारते हुए संविधान की इसी धारा 341 को खत्म करने की मांग करने के लिए यह सेमिनार बुलाया गया था। सेमिनार के महत्त्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस सेमिनार में हिस्सा लेने आए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील महमूद पार्चा ने दावा किया कि आरक्षण धर्म के आधार पर भी दिया जा सकता है।

देखा जाये तो आरक्षण देश के अन्दर एक ऐसा अमृत का प्याला बन चुका है जिसे जाति और धर्म के नाम पर हर कोई पीना चाहता है। गुजरात में गुज्जर समुदाय तो हरियाणा में जाट समुदाय तो इसके लिए सत्ता से टकराव लेने से भी नहीं हिचकते दिख रहे हैं। यह जातिगत आरक्षण का प्याला है लेकिन मुस्लिम समुदाय इससे एक कदम आगे बढ़कर धार्मिक आधार पर आरक्षण की मांग लेकर खड़े होने लगे हैं। भारतीय युवाओं को यह याद दिलाने की जरुरत है कि 1947 में धर्म के आधार पर देश के बंटवारे की नींव भी इसी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रखी गई थी। गौर करने वाली बात यह है  70 साल बाद  एक बार फिर भारत को बांटने की बात यहां से हो रही है।

मुस्लिम आरक्षण की इस मांग पर जाने-माने विचारक तुफैल अहमद लिखते हैं कि भारतीय सेना से रिटायर्ड ब्रिगेडियर सैयद अहमद अली ने 2012 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति का काम संभाला था सेना में 35 साल काम करने के बाद भी ब्रिगेडियर साहब उसकी धर्मनिरपेक्षता को आत्मसात नहीं कर पाए। केवल नाम से ही सही लेकिन सैयद अहमद अली का वास्ता पैंगबर मोहम्मद के वंश से है। मुसलमानों में सैयद ऊंची जाति मानी जाति है और इनका निकाह निचली जातियों में अमूमन नहीं होता। एएमयू की वेबसाइट भी ब्रिगेडियर अली को जाने-माने जमींदारों के परिवार से बताती है। मुसलमानों के पिछड़ेपन में इन जमींदारों का भी उतना ही हाथ है जितना उलेमाओं का है।

तुफैल कहते हैं कि अब ब्रिगेडियर अली ने भारतीय मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग उठाई है। ब्रिगेडियर साहब शायद बंटवारे के दौरान हुए खून-खराबे को भूल गए। जिन हालातों में संविधान निर्माताओं ने धर्मनिरपेक्ष संविधान बनाया था। सेमिनार में मुख्य अतिथि ब्रिगेडियर अली ने कहा,‘मुसलमानों का पिछड़ापन दूर करने के लिए शिक्षा में आरक्षण जरुरी है।’ होना तो यह चाहिए था कि भारत पर 1000 साल के मुस्लिम शासन के दौरान शिक्षा और विज्ञान के दम पर वह देश को चार-चांद लगा देते। लेकिन मुस्लिम शहंशाहों को मस्जिद, महल और मकबरे बनवाने से फुर्सत मिलती तब तो वे रेलवे, बस और टेलीफोन विकसित करने के बारे में सोचते। नई खोज और आविष्कार की बात करने के बजाए जब एक विश्विविद्यालय का कुलपति आरक्षण की बात करे, तो अफसोस होना लाजमी है। उस पर से सैयद अहमद अली सेना में ब्रिगेडियर भी रह चुके हैं। ब्रिगेडियर साहब सेना से इतना नहीं सीख पाए कि तवज्जो काबिलियत को मिलनी चाहिए।

मुस्लिम समाज को आगे बढ़ना हो तो उसे वैज्ञानिक नजरिया अपनाना होगा, उदार सोच रखनी होगी, तभी असलियत के मसले और उनसे जुड़े सही सवाल उठा पाएगा। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बनाने के पीछे भी सर सैयद की खास सोच थी। उन्होंने मुस्लिम समुदाय में वैज्ञानिक और तार्किक सोच पैदा करने के लिए इसकी नींव रखी थी। उनकी ऊर्दू पत्रिका तहजीबुल अखलाक भी मुस्लिम छात्रों में नई सोच पैदा करना चाहती थी। लेकिन लगता है एएमयू के कुलपति ने इसके संस्थापक सर सैयद से इतना भी नहीं सीखा। अली ने धर्म के आधार पर आरक्षण की वकालत की। धर्म के आधार पर इस तरह की वकालत का नतीजा एक और बंटवारा ही होगा। दुख की बात यह है कि एक बार फिर एएमयू इसका गवाह बन रहा है। हाल के दिनों में भारत में इस्लाम के पैरोकारों ने अपना मकसद पूरा करने के लिए दलितों से दोस्ती गांठी है। जिसका मुख्य कारण भारत में 25 फीसदी दलितों की आबादी है। महमूद पार्चा ने संविधान की धारा 341 को दलितों और मुसलमानों की इस दोस्ती की गांठ बता दिया.। सेमिनार में पार्चा ने कहा कि धारा 341 पर बहस न होना दलितों और मुसलमानों के अधिकारों का हनन है। इसे तुरन्त हटाया जाना चाहिए। साल 2017 में सर सैयद की 200वीं जन्मशती है। इस मौके पर एक बार देखना चाहिए क्या एएमयू एक बार फिर भारत के बंटवारे के आंदोलन की अगुवाई तो नहीं कर रहा?…

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh