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पहरेदारों की पहरेदारी कौन करेगा?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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आज देश विमुद्रीकरण के दौर से गुजर रहा है. 8 नवम्बर को प्रधानमंत्री जी के आहवान के बाद पूरा राष्ट्र इस राष्ट्र निर्माण यज्ञ में भ्रष्टाचार रुपी रोग को खत्म करने के लिए कतार में खड़ा हो गया किन्तु विडम्बना देखिये नोट बदली यानि विमुद्रीकरण काला धन खत्म करने के लिए था, परन्तु इस नोट बदली में ही करप्शन हो गया! इसका मतलब जब दवा बीमार है तो मरीज कैसे ठीक होगा? या कहो इन पहरेदारों की पहरेदारी कौन करेगा? कोई भी राष्ट्राध्यक्ष नीति नियंता होता है. वो राष्ट्र को आगे ले जाने के लिए नीतियाँ बनाता है उसको लागू करने का अधिकार क्षेत्र अधिकारीयों को प्रदान किया जाता है. ताकि वो नीतियाँ जन जन तक पहुँच सके उसका लाभ सबको मिल सके. किन्तु जिस तरीके से बेंक कर्मियों ने नोटबंदी में अपनी भूमिका निभाई उसे देखकर गरीब आदमी जरुर कहीं ना कहीं खिन्न दिखाई दे रहा है.

ताजा प्रसंग के संदर्भ में यदि बात करें तो हाल के एक महीने ने यह साबित कर दिया कि यदि किसी देश का शाशक ईमानदार हो तो भी वहां भ्रष्टाचार हो सकता है. अभी चलन से बाहर किए गए नोटों को अवैध रूप से बदलने में शामिल रैकेट का पर्दाफाश करते हुए ईडी ने धनशोधन मामले में जांच के तहत सरकारी अधिकारी समेत सात कथित बिचैलियों को गिरफ्तार किया है और कर्नाटक में 93 लाख रुपए के नए नोट बरामद किए हैं. गौरतलब है कि नोटबंदी की घोषणा के बाद जहां कई जगहों से 500 और 1000 के बंद किए जा चुके नोट बरामद हुए हैं तो कुछ जगहों से नए 2000 रुपये के नोटों में बड़ी धनराशि पकड़ी गई है. आयकर विभाग ने छापा मारकर विभिन्न  स्थोनों से 106 करोड़ रुपये की नकदी और 127 किलो सोना पकड़ा. इसमें से 10 करोड़ रुपये की नई नकदी शामिल थी.

पिछले हफ्ते नई दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से कुछ लोगों को 27 लाख के 2000 रुपये के नए नोटों के साथ गिरफ्तार किया गया था. वहीँ गुजरात में करीब पौने तीन लाख के 2000 रुपये के नए नोटों में घूस लेते दो अधकारियों को गिरफ्तार किया गया था. यदि पुरे महीने का मोटा सा भी रिकोर्ड देखे तो 8 दिसम्बर चेन्ननई 10 करोड़, 07 दिसम्बर गोवा 1.5 करोड़, 29  नवंबर कोयंबटूर 1 करोड़, 09 दिसम्बर सूरत 76 लाख, 07 दिसम्बर उडुपी 71 लाख 09 दिसम्बर मुंबई 72 लाख होशंगाबाद 40 लाख 08 दिसम्बर गुड़गांव 27 लाख रूपये पकडे गये. इसमें कोई संदेह या प्रश्न नहीं है कि ये मोटी रकम बिना बैंक अधिकारीयों की मिली भगत के बदली गयी हो. अब सवाल यह है प्रधानमंत्री जी की इस काले धन पर की गयी पहल पर भ्रष्ट अधिकारीयों ने जो खेल भ्रष्टाचार का दिखाया उसकी जाँच कौन करेगा या अब कहो इन पहरेदारों की पहरेदारी कौन करेगा?

जब रोम साम्राज्य अपने वैभव की बुलंदियाँ छू रहा था, तब उसकी सरकार उस जमाने की सबसे बड़ी ताकत थी. रोम के कानून इतने बढ़िया थे कि आज भी कई देशों के कानून उसी से लिए गए हैं. रोम की इस कामयाबी के बावजूद,जो रोम उस समय बड़ी-बड़ी ताकतों से नहीं हार पाया वह रोम अन्दर की एक बीमारी से हार गया. वह था भ्रष्टाचार. आखिर में इसी दुश्मन के हाथों रोम बरबाद हो गया. भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग, दरअसल उसूलों की लड़ाई है. इसलिए यह जंग जीतने के लिए सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी कानून बनाना या बन्दुक या किसी सजा का डर दिखाना काफी नहीं है. किसी की हत्या करने पर मृत्यु दंड तक का कानूनी प्रावधान है लेकिन हत्या फिर भी होती है इसका मतलब अपराधी लोग सजा से नहीं डरते किन्तु मानवीय द्रष्टिकोण रखने वाले लोग एक चींटी को भी नहीं मारते जबकि वो कोई कानूनी अपराध नहीं है भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के लिए एक और कदम उठाना जरूरी है, जो इतना आसान नहीं है. वह है लोगों के दिलों में बदलाव लाना. देश-देश के लोगों को अपने मन में घूसखोरी और भ्रष्टाचार के लिए नफरत पैदा करनी चाहिए, तभी यह काली कमाई खत्म होगी.

50 दिन में अभी कुछ दिन शेष बचे है. विपक्ष सरकार पर हावी है क्योंकि उसे पिछले 2 ढाई साल में सरकार की टांग खीचने के लिए पहली बार राजनैतिक स्तर का मुद्दा मिला है वरना अभी तक तो वह अपना काम कुत्ता, पिल्ला, असहिष्णुता, सूट बूट आदि जैसे मुद्दे उठाकर अपने वोट बेंक को बचाता दिख रहा था लेकिन इस बार उसे 50 दिन का इंतजार है और उसे उम्मीद है कि बार भाजपा के वोट बैंक में भी सेंध लग सकती है. हाँ जिस तरीके से विमुद्रीकरण नीति में खेल किया उससे उनका दावा मजबूत होता दिखाई दे रहा है. सरकार को अब जल्द बड़े और कड़े कदम उठाने होंगे वरना गरीब आदमी का सरकार से वो विश्वास जरुर डोल जायेगा. जिसके सहारे वो लाईन में खड़ा अपनी बारी का इंतजार कर रहा है…विनय आर्य (सचिव आर्य समाज)

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