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कट्टरता की भेंट में बांग्लादेश

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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चार  रोज  पहले बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा दहाई की संख्या से ज्यादा मंदिरों और सैकड़ों हिन्दुओं के घरों को निशाना बनाया गया. किन्तु भारतीय राजनेताओं के लिए इससे ज्यादा गंभीर विषय यह रहा कि भोपाल में एक सुरक्षाकर्मी की हत्या कर जेल तोड़कर भागे सिमी के आठ खरनाक आतंकियों को पुलिस द्वारा मुठभेड़ में क्यों मार गिराया? हालाँकि राजनेताओं का आतंकियों के प्रति यह लगाव कोई नया नहीं है इससे पहले भी  2004 को गुजरात पुलिस पर ख़ालसा कॉलेज मुंबई की इशरत जहां, समेत दो पाकिस्तानियों अमजद अली राणा और जीशान जौहर को फर्जी मुठभेड़ में मारने के आरोप लगे थे., बाटला हॉउस आदि कई मुठभेड़ को लेकर राजनेताओं द्वारा संसद तक रोना रोया गया. हो सकता है इस तरह के मामले भारतीय राजनीति का एक हिस्सा बन गया हो और देश के नेताओं के लिए शर्म सबसे छोटा और वोट सबसे बड़ा शब्द बन गया हो!

बांग्लादेश के चटगांव में हिंदुओं के कई मंदिर और घर गिराए गए. 15 मंदिरों और सैंकड़ों घरों को निशाना बनाया गया है डेली स्टार की खबर के मुताबिक हजारों लोग जिसमें हेफजात-ऐ-इस्लाम और अहले सुन्नत के कार्यकर्ता भी शामिल थे. एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि करीब 150 से 200 लोगों समेत इलाके में 15 मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया. नासिरनगर के पुलिस प्रमुख अब्दुल कादिर के अनुसार कम से कम 20 घरों को आग लगा दी गई थी. हालाँकि बांग्लादेश और पाकिस्तान में इस तरह की घटना का होना आम बात है. इसके बाद भी कुछेक तथाकथित बुद्धिजीवियों का झुण्ड इस बात को लेकर हमेशा आगे आता है कि इन घटनाओं को धर्म विशेष से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. आखिर क्यों नहीं जोड़ा जाना चाहिए? जहाँ भी इस तरह के घटनाएँ होती हैं वहां एक विशेष समुदाय के लोग शामिल होते हैं। चाहे वो 9ध्11 का अमेरिका पर हमला हो, या फिर भारत में 26ध्11, चाहे पिछले दिनों हुई फ्रांस में चार्ली हेबदो की घटना, या एक ताजा तरीन घटना जो अभी बांग्लादेश में हुई. जिसमें चुन-चुन कर हिन्दुओं और उनके मंदिरों पर हमला किया गया. आखिर कब तक हम इस बात से इनकार कर सकते हैं? ये एक ऐसा सच है जिसे हम आज नही तो कल जरुर मानेंगे, क्योंकि ये घटनाएं तब तक बंद नहीं होगी जब तक इस विशेष धर्म के लोगों को आधुनिक विचारों एवं मानव जाति का मूल्य नहीं समझाया जाता है. हालांकि मैं ये नहीं कहता कि इस धर्म के मानने वाले सभी लोगों कि सोच एक जैसी है. लेकिन  समस्या तो ये है कि मुठ्ठी भर लोग इस कट्टरता के समर्थक हैं और इन देशों की राजनीति इन लोगों से प्रभावित है. तो इन देशों के शासकों को भी समझना होगा कि सत्ता का काम धर्म चलाना नहीं होता बल्कि धार्मिक कट्टरवाद से आम आदमी की सुरक्षा करना है.

बांग्लादेश के जाने-माने लेखक और कार्यकर्ता शहरयार कबीर कहते है कि ये बात सही है कि जब-जब कट्टरपंथियों का बोलबाला हो जाता है तब-तब अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनना पड़ता है. ऐसा आज से नहीं बांग्लादेश की आजादी के बाद कई दफा हो चुका है. कई अन्य देशों की तरह यहाँ भी इन्हे राजनीति की भेंट चढ़ना पड़ता है. ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए. बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ हिंसा का एक दौर 1971 में आया था जब बड़े हिन्दू नेताओं जैसे ज्योतिरमोय गुहा ठाकुरता, गोबिंद चन्द्र देब और धीरेन्द्र नाथ दत्त जैसों की हत्या फौज के साथ हुई मुठभेड़ में हुई थी. आंकड़ों पर गौर करें तो जहाँ बांग्लादेश में 1971 के दौरान लगभग पच्चीस प्रतिशत आबादी हिंदुओं की थी वहीँ अब दस प्रतिशत के आस पास है. बांग्लादेश में एक अर्से से मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन जोर पकड़ रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में धर्म के नाम पर कई प्रमुख आतंकवादी संगठन अस्तित्व में आए हैं.देश के हिंदू अल्पसंख्यक गंभीर दबाव में है. जिससे धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव और शोषण के मामले धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे हैं. हिन्दू सुरक्षा, सम्मान और मानवाधिकारों से वंचित निम्न स्तर का जीवन बिता रहे हैं. बोद्ध सहित समस्त हिन्दुओं पर नित्य हमले एक आम बात है. बलपूर्वक मतान्तरण, अपहरण, बलात्कार, जबरन विवाह, हत्या और धर्मस्थलों को विनष्ट करना वहां के हिन्दुओं के प्रतिदिन के उत्पीड़ित जीवन का भाग सा हो गये हैं.

इन देशों की कोई भी संवैधानिक संस्था उनकी सहायता के लिए आगे नहीं आती है. यदि आती भी है तो उसे इन कट्टर मजहबी तंजीमो का शिकार होना पड़ता है. इसलिए उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष नीति सिर्फ वहां के सविंधान के कागजों में लिपटी पड़ी है. कभी सामाजिक जीवन तक सिमित रहे धार्मिक कट्टरपंथी अब बांग्लादेश के लोकतांत्रिक संस्थानों पर भी असर डालने लगे है. राजनीतिक दलों में धार्मिक कट्टरता का मुकाबला करने का संकल्प कमजोर पड़ रहा है. इसलिए हर साल हजारों हिंदू बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण ले रहे हैं. आज भले ही धर्म के नाम पर बांग्लादेश समेत कई इस्लामिक मुल्कों में ईशनिंदा जैसे विषयों से जुड़े कानूनों को सर्वोपरी बनाये रखा गया हो किन्तु सीरिया, इराक एवं अफगान में जो कुछ हुआ वो इसी धार्मिक कट्टरता का परिणाम है. सब जानते है ईशनिंदा जैसे कानूनों ने इन देशों में धार्मिक चरमपंथ को बढ़ावा दिया है जिस कारण अल्पसंख्यक पहले से अधिक असहाय और असुरक्षित हो गए हैं. परिणामस्वरूप पाकिस्तान के बाद बांग्लादेश के हिन्दू भी पलायन कर भारत में शरण मांगने को विवश हो रहे हैं. पर ऐसे में सवाल यह है कि भारतीय वोटतंत्र की राजनीति और यहाँ के बिगड़ते धार्मिक असंतुलन को देखते हुए कल हिन्दू भारत के बाद कहाँ शरण लेंगे? लेख राजीव चौधरी

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