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हमे श्रीलंका से सीखना चाहिए

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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जम्मू-कश्मीर में, एक बार फिर सेना के मनोबल पर प्रहार किया गया जिससे 17 सैनिक शहीद हो गए और 20 अन्य घायल हो गए। हमले में घायल हुए 20 सैनिकों में से 7 की हालत गंभीर है. इसे साफ-साफ भारत पर पाकिस्तान का हमला भी कहा जा सकता है। एक बार फिर सोशल मीडिया पर निंदा आलोचना का ट्रेंड देखने को मिलेगा, हमलावरों के प्रति रोष व्यक्त किया जायेगा, एक बार फिर सूखी आँखों से नम और अश्रुपूर्ण श्रद्धाजंली का नाट्य रूपांतरण सा होता दिखाई देगा. न्यूज़ रूम में टाई लगाये वो पत्रकार बंधू जो बुरहान वानी को गरीब माँ का बेटा बता रहे थे ब्रेक ले लेकर न्यूज़ रूम से आतंक के खिलाफ युद्ध छेड़ते नजर आयेंगे, एक फिर बार से न्यूज़ स्टूडियों में भारत पाकिस्तान की मिसाइल, टेंक और सैन्य क्षमता का आकलन होगा, हथियार और पैदल सेना की गिनती होती दिखाई देगी. जब तक कोई नई खबर नहीं आएगी सिलसिला चलेगा फिर अचानक या तो दलितों पर हमला हो जायेगा या बीफ पर बहस छिड जाएगी नहीं तो मुस्लिम भारत माँ जय क्यों बोले यह सबसे बड़ा सवाल बन जायेगा. मतलब एक पुरानी परम्परा को जीवित रखने का कार्य जारी रहेगा. इसके कुछ दिन बाद फिर शांति वार्ता की मेज से धूल झाड़ने का काम होता दिखाई देगा ताकि पाकिस्तान की गोद में बैठकर अलगावादी नेता उस पर कोहनी टिका कश्मीर को बटवारे का धंधा बना सके. पूर्व की भांति हल कुछ नहीं होगा कुछ दिन बाद सैनिको की जगह नये सैनिक ले लेंगे और जन्नत के नाम पर नये आतंकी खड़े हो जायेंगे. सिलसिला चलता रहेगा और पाकिस्तान इस धारणा को मजबूत करता रहेगा कि कश्मीर बनेगा पाकिस्तान

कल जिस माँ ने पुत्र खोया है उस माँ की छाती जरुर फ़टी होगी, दुनिया उस बाप की भी लूटी होगी, जिसने अपना सहारा खोया है दर्द की सुई एक पत्नी और उस संतान के तन मन में चुभी होंगी, जिनकी मांग का सिंदूर और जिसके सर से बाप का साया छिना है, यदि कभी कुछ नहीं छिना तो उन लोगों को, जिन्होंने कश्मीर को कब्रिस्तान बना डाला. सालों पहले से अलगावादी नेताओं का चेहरा बेनकाब हो चूका है कि वो किस तरह दुश्मन देश से मिलकर देश की संप्रभुता, अखंडता पर चोट कर रहे है. पर वो आजाद है, और  उनकी यही आजादी ही कश्मीर की आजादी को मजबूत कर रही है. महाभारत में एक प्रसंग है कि युद्ध के दौरान कई बार कृष्ण ने अर्जुन से परंपरागत नियमों को तोड़ने के लिए कहा जिससे धर्म की रक्षा हो सके। जो अधर्म के रास्ते पर चलेगा उसका सर्वनाश निश्चित है, फिर चाहे वह कोई भी व्यक्ति क्यों ना हो। कर्ण गलत नहीं थे सिर्फ उन्होंने गलत का साथ दिया था. इस कारण उन्हें मौत मिली समझने के लिए यही काफी है. अब केवल अकर्मण्य बने रहने का खतरा देश कब तक उठाता रहेगा यह सोचनीय विषय है। भारतीय जवाबी कार्रवाई कड़ी होनी चाहिए। प्रतिकार जल्द और कड़ा होना चाहिए।” एक तरफ हम लोग विश्व शक्तियों के साथ भारत की  तुलना करते नहीं थकते दूसरी और देखे तो हम इतने कमजोर राष्ट्र बन चुके है कि अपने हितों पर होती चोट पर निंदा से ज्यादा कभी कुछ नहीं कर पाते.यदि हमे निंदा से ही काम चलाना है तो फिर इस हथियार की होड़ से बाहर आना चाहिए, या फिर अब हमे श्रीलंका जैसे छोटे देश से भी सीखना चाहिए कि किस तरह उन्होंने लिट्ठे जैसे मजबूत आतंकी नेटवर्क के ढांचे को नेस्तनाबूद किया, हमें इजराइल से सीखना चाहिए कि अपने दुश्मनों के बीच रहकर अपना स्वाभिमान कैसे बचाया जाता है. चीन से सीखे जो भले ही अक्सर कहता रहा है कि वह अपने नागरिकों को अपनी आस्थाओं के लिए व्यापक स्वतंत्रता देता है पर सब जानते है कि चीन सरकार अपने सभी धार्मिक समूहों पर कड़े नियंत्रण रखती है, लेकिन हमारी 125 करोड़ से ज्यादा आबादी की सरकार चंद अलगावादी नेताओं से निपटने में अक्षम दिखाई दे जाती है. क्या साधन की कमी है या इच्छाशक्ति की? यह बात भारत सरकार स्पष्ट करनी चाहिए

म्यूनिख ओलिंपिक खेलों के दौरान 11 इजराइली एथलीटों को बंधक बनाया और बाद में सबकी हत्या कर दी. बंधकों को छुड़ाने की कोशिश में वेस्ट जर्मनी द्वारा की गई कार्रवाई में 5 आतंकी मारे गए. लेकिन इसके बाद बाकी बचे तीन आतंकियों, जिनमें इस साजिश का मास्टरमाइंड भी शामिल था, को वहां की खुफिया एजेंसी मोसाद ने सिर्फ एक महीने के अंदर ही ऑपरेशन ‘रैथ ऑफ गॉड’ चलाकर न सिर्फ खोजा बल्कि मार भी गिराया. इजराइल ने हमले की निंदा नही की बस प्रतिकार किया. 2004 में हमास के प्रमुख नेता एज्ज अल-दीन शेख खलील को सीरिया की राजधानी दमिश्क में मारा, 2008 में हिजबुल्ला के प्रमुख नेता इमाद मुघनियाह को दमिश्क में मौत के घाट उतारा, 2008 में सीरिया न्यूक्लियर प्रोग्राम के प्रमुख मोहम्मद सुलेमान को तारतुस में मारा और 2010 में दुबई में हमास के प्रमुख नेता महमूद-अल-मबहू को मौत की नींद सुला दिया. यानी इजराइल का दुश्मन दुनिया में कहीं भी छिपकर बैठा हो मोसाद उसे उसके अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लेता है. भारत ने अगर अपने दुश्मनों को खुद ही मारना नहीं सीखा तो आने वाले समय में भी उसे आतंकी हमलों का दर्द झेलना होगा और वह सिर्फ मोस्ट वॉन्टेड लोगों की लिस्ट ही सौंपता रह जाएगा.

आये दिन जवानों के धर्य पर हमला होता है,कभी बोडों आतंक के जरिये तो कभी नक्सलवाद के जरिये, कश्मीर का हाल तो किसी से छिपा नहीं वहां तो जवान गाली और गोली दोनों खा रहे है. कश्मीर में हर एक घटना के बाद नेहरु और पाकिस्तान को दोषी ठहराकर पल्ला झाड़ लिया जाता है चलो मान लिया कि कश्मीर समस्या नेहरु की देन है जिस कारण वहां सैनिक मर रहे है किन्तु नक्सलवादी और बोडों द्वारा मारे जा रहे सैनिक किसकी गलती का परिणाम है? इस सर्वदलीय गलती पर पर कोई भी दल चर्चा करने को तैयार नहीं होता. कोई भी देश वीरता के साथ जन्म लेता है और कायरता के साथ मर जाता है, अत्यधिक शांति भी कायरता की जननी होती है, शांति के लिए यदि युद्ध जरूरी हो तो युद्ध भी करना चाहिए सौ दिन बेगुनाहों का रुदन सुनने से बेहतर है एक दिन गुनहगारों की चीख सुन ली जाये, जिसका सबसे बड़ा उदहारण इसी देश में सन चौरासी का आपरेशन ब्लू स्टार है. दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा …राजीव चौधरी

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