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पिछले दिनों सूफी सम्मलेन में शरीक पीएम मोदी ने इस्लाम को शान्ति और सद्भाव का धर्म बताया था| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूफीवाद को शांति की आवाज बताते हुए कहा कि अल्लाह के 99 नामों में से कोई भी हिंसा से नहीं जुड़ा है जब हम अल्लाह के 99 नामों के बारे में सोचते हैं तो उनमें से कोई भी बल और हिंसा से नहीं जुड़ता| अल्लाह के पहले दो नाम कृपालु एवं रहमदिल हैं, अल्लाह रहमान और रहीम हैं| सब जानते है प्रधानमंत्री जी बहुत अच्छा बोल लेते है तो इसमें कोई हैरानी नहीं, बस हैरानी इस बात की है कि प्रधानमंत्री जी ने इस्लाम को शांति का मजहब उस समय बताया जब समूचे मीडिल इस्ट के साथ यूरोप से एशिया तक जल थल और नभ में इस्लामिक आतंकवाद से पूरा विश्व खून से लाल हुआ बैठा है| बेगुनाह लोग जिहाद के नाम पर मारे जा रहे है| जिस समय प्रधानमंत्री जी इस्लाम की सहिष्णुता का उपदेश दे रहे थे ठीक उसी समय मुज्जफरनगर के अन्दर शिव चौक पर एक हिन्दू लड़की की हुई छेड़छाड़ को लेकर हुई अपनी गलती ना मानते हुए कुछ लोग पत्थरबाजी कर तमंचे लहराकर अल्लाह हु अकबर के नारे लगा रहे थे|
ऐसा नहीं है कि सूफीवाद गलत है, सूफी मुसलमान हमेशा से उदारवादी है, जो इस्लाम को आज भी मोक्ष का मार्ग मानते है, जो सूफी परम्पराओं को लेकर आज भी इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ खड़े है| देखा जाये तो इस्लाम के पुरे इतिहास में उग्रपंथीयों का बोलबाला रहा है| लेकिन नरमपंथी सूफीवाद ने उन्हें हमेशा पराजित किया है| लेकिन करने की तुलना में यह कहना आसान है कि उदारवादी मुस्लिम आज पहाड़ जैसी चुनौती का सामना कर रहे है| सूफी संतो के पास आज भी इस्लाम के प्रचार प्रसार का पुरातन तरीका है जबकि कट्टरवाद जेहादी मुस्लिम के पास आधुनिक इन्टरनेट का पूरा साजो सामान और हथियार| अब उदारवादी मुस्लिम जगत को नई रणनीति के बारे सोचना होगा उन्हें कट्टरवादी मुस्लिम का चेहरा उनकी विचारधारा को दुनिया के सामने लाकर इसका पर्दाफाश करना चाहिए|
ब्रसेल्स हमले में 35 की मौत के बाद अभी पाकिस्तान के अन्दर जमातुल अहरार के एक आत्मघाती हमलावर ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर को खून से रंग दिया। खुद को बम विस्फोट से चिथड़ा कर गुलशन-ए-इकबाल पार्क में ईस्टर मना रहे 70 से अधिक लोगों की भी जान ले ली है। हमले में तीन सौ से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए हैं और इनमें से कुछ जीवन-मौत के बीच झुल रहे हैं। मरने वाले लोगों में अधिकतर ईसाई समुदाय से हैं जिससे प्रतीत होता है कि हमलावर का मकसद धर्म विशेष के लोगों को नुकसान पहुंचाना था। अजीब है निर्दोष मासूम लोगों को मारना, बच्चों ओरतों को जलील कर मारने के बदले जन्नत की सैर सिखाया जाता है| अब समूचे मुस्लिम जगत को इस निष्कर्ष पर जाना होगा क्योकि पैगम्बर की मौत के बाद 300 साल तक मजहबी पुस्तक का संकलन जारी रहा| उलेमाओं द्वारा कुरान पर निर्विवाद रूप से यकीन करने का फरमान सुनाना, बाहर निकलकर काफिरों को मारने वाली आयतों की क्या आज पुन: समीक्षा की जरूरत नहीं?
पैरिस में हुए हमले के बाद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया था कि “जो लोग मेरे मजहब के नाम पर हत्या करते फिरते है मुसलमानों और इस्लाम को उनसे बड़ा खतरा कोई नहीं पहुंचाता|” बड़ा हैरान कर देने वाला ट्वीट था कि हमला पैरिस में होता है तब तो इनका उदारवादी चेहरा दिखाई देता है और जब हमला कश्मीरी पंडितो पर हो तो खामोश| खेर कहने का मतलब यह है कि आज कट्टरवादी मुस्लिम के पास कट्टरता की पूरी फौज है और उदारवादी मुस्लिम जगत के पास कुछ बयान व् ट्वीट| फिर भी मुस्लिम समुदाय को इस आधुनिक युग में समझना होगा कि शरियत कानून उस समय का सामाजिक कानून तो हो सकता किन्तु कोई दिव्य आदेश नहीं है| जिसे हर हाल में माना जाये आज हमारे पास लोकतांत्रिक प्रणाली है, सामान मानवीय द्रष्टिकोण पर खरे उतरे कानून है; जिसमे भेदभाव न के बराबर है| अब अब संयम का खाका तैयार करना होगा सूफी समुदाय को इसका सर्वेक्षण करना चाहिए कि पुरातन धार्मिक पद्धति हथियारों के बल पर कब तक थोफी जाएगी? और चलो थोफ भी दी तो क्या गारंटी है कि इसके बाद शांति अमन का पैगाम आएगा? क्योकि सबसे ज्यादा अशांति के शिकार तो मुस्लिम बहुल देश ही है| पुरे विश्व में धार्मिक आन्दोलन के रूप में चल रहे मदरसे जिनका काम विशेष मजहबी प्रणाली को जिन्दा रखना है वो सब कुरान को ईश्वरीय कृत ग्रन्थ मानते है कहीं ऐसा तो नहीं इसी बात से आतंक की जड़े जमना शुरू होती हो? किसी भी संदर्भ या प्रसंग में मानव के आज की जरूरतों को किनारे कर कुरान का हवाला देकर मानने को मजबूर किया जाता रहा है| पिछले सालों में देखे तो भारत से लेकर पकिस्तान, अफगानिस्तान, यूरोप, अरब देशों ने एक पवित्र कहें जाने वाली पुस्तक के नाम पर लाखों लोगो के लहू से जल थल मरुस्थल नभ हर जगह को लाल किया है| क्या अब कोई मुझे शांति के धर्म का अर्थ परिभाषित करके समझा सकता है? राजीव चौधरी
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