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देश की अस्मिता के दुराचारी!!

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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किसी भी देश में अभिवयक्ति की आजादी के नाम पर कुछ लकीरें होती होगी किन्तु फ़िलहाल के दिनों में देखे तो भारत के अन्दर अभिवयक्ति की आजादी के नाम पर एक जंग सी मुखर रही है| अर्थात मुझे बोलने दो, मुझे कहने दो, अपनी भडास निकालने दो, जो दिल में आये बकने दो ये में नही कह रहा बल्कि अभिवयक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मीडियाई परिभाषा है| अभी अभी देशद्रोह के आरोपी जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया ने एक बार फिर बिगड़े बोल बोले हैं। इस बार उसके निशाने पर भारतीय सेना के जवान हैं। कन्हैया ने कश्मीर का जिक्र करते हुए कहा कि कश्मीर में सेना द्वारा महिलाओं का बलात्कार किया जाता है, सुरक्षा के नाम पर जवान महिलाओं का बलात्कार करते हैं। ठीक यही बात (यू. एन. ओ) के अन्दर पाकिस्तान कहता है किन्तु वो उनकी अभिवयक्ति की स्वतंत्रता है और यह कन्हैया कुमार का मौलिक अधिकार है| मुझे दोनों की भाषा में कोई अंतर दिखाई नहीं दिया किन्तु कन्हैया कुमार का पक्ष भारत का एक मजबूत राजनैतिक धडा लेता है| तो फिर भारत का सविधान, राष्ट्र के गौरव तिरंगे का अपमान यहाँ कोई मायने नहीं रखता, कोई भी यहाँ अभिवयक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश के ध्वज,सेना धार्मिक ग्रंथो और महापुरुषों को अपशब्द कहकर इस देश की राष्ट्रीय, सामाजिक धार्मिक सरंचना के साथ दुराचार कर सकता है!! क्या मनुस्मृति के विरोधी वामपंथ के ठेकेदार कभी इस्लामिक कट्टर कुरूतियों, शरियत का विरोध कर सकते है? यदि इनके अन्दर समाजवाद का इतना रंग भरा है तो क्या यह लोग सबके लिए सामान नागरिक संहिता का समर्थन कर सकते है?

भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और उदार समाज की गारंटी देता है| संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है| अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मनुष्य का एक सार्वभौमिक और प्राकृतिक अधिकार है और लोकतंत्र, सहिष्णुता में विश्वास रखने वालों का कहना है कि कोई भी राज्य और धर्म इस अधिकार को छीन नहीं सकता| अच्छी बात है होना भी यही चाहिए किन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कोई लकीर कोई सीमा भी होनी चाहिए? यह नहीं की आप इसकी आड़ में अपने देश धर्म को गाली दो अपनी राष्ट्र रक्षा कर रही सेना पर आरोप लगाओं ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी राष्ट्र के जहर पीने के बराबर है|

दूसरा कल जेएनयू के अन्दर मनुस्म्रति किताब के पन्ने जलाये गये मुझे नहीं पता यह सब ठीक था या गलत? किन्तु में सिर्फ इतना कहूँगा हमारा राष्ट्र मनुस्म्रति से नहीं भारतीय सविंधान से चलता है और उसके अन्दर हर एक भारतीय समान आदर मिलता है| फिर भी यदि आपको उक्त पुस्तक से कोई मानसिक पीड़ा है तो उससे ऊपर उठकर खुद को साबित करना चाहिए ना कि ऐसे कृत्य किये जाये जिससे सामाजिक ताना बाना बिगड़े| लेकिन फिर में अपने देश की सहिष्णुता का आदर करता हुआ एक वाकया बताना चाहूँगा कि अन्य देशों के मुकाबले भारत एक ऐसा देश है जहाँ विश्व के सबसे सहनशील लोग रहते है पिछले दिनों मात्र एक विवादित कार्टून की वजह से पेरिस के अन्दर एक पत्रिका के कार्यालय में कुछ मजहबी मानसिकता से ग्रसित लोगों ने खुनी खेल खेला था किन्तु भारत में पेरिस जैसे मामले का सामना पहली बार 1920 के दशक में हो चूका है जब अविभाजित भारत के शहर लाहौर में एक आर्य समाजी हिंदू प्रकाशक ने मुसलमानों के पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद के निजी जीवन के बारे में एक विवादास्पद किताब प्रकाशित की| पैग़म्बर मोहम्मद पर लिखी जाने वाली किताब के प्रकाशक राजपाल को गिरफ़्तार कर लिया गया और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला, और अजीब बात यह है की हमारे देश के अन्दर तब धर्म के अपमान का कोई क़ानून नहीं था| कई साल की सुनवाई के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन एक मुस्लिम युवक ने पुस्तक के प्रकाशक राजपाल की 1929 में हत्या कर दी| हत्यारे को उसी साल फांसी की सज़ा हुई. इस घटना के नतीजे में भारतीय दंड संहिता में धर्म के अपमान की धारा 295-ए के तौर पर शामिल किया गया| क्या उस धारा का आज इस्तेमाल नहीं किया जा सकता?

बहुत पहले रोमन साम्राज्य में ग्लेडियेटर्स के बीच लड़ाई काफ़ी लोकप्रिय होती थी और यह आम जनता के मनोरंजन का एक बड़ा साधन होता था. ग्लेडियेटर्स अक्सर ग़ुलाम होते थे और उन्हें अखाड़ों में उतारने वाले उनके मास्टर या मालिक समाज के रईस हुआ करते थे, जो उन्हें सत्ता के साथ लड़ाया करते थे आज दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में 9 फ़रवरी को उठा विवाद रोमन साम्राज्य में ग्लेडियेटर्स के बीच लड़ाई की तरह लगता है, वामपंथियों के ग्लेडियेटर्स कन्हैया कुमार और उमर ख़ालिद हैं जो दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के ग्लेडियेटर्स से भिड़े हुए हैं| मीडिया के लिए यह सब मनोरंजन का साधन बना हुआ है किन्तु कहीं कहीं यह सब राष्ट्र की अस्मिता के साथ खिलवाड़ जैसा है यदि इसे आज नहीं रोका गया तो देशद्रोह की खरपतवार बढती चली जाएगी…writer rajeev choudhary

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