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जीसस ईश्वर का बेटा नहीं था!!

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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कभी चरमपंथियों की आँख की किरकिरी रही अपनी बेबाक शेली के लिए मशहूर बंगलादेशी  मूल की लेखिका तसलीमा ने एक बार फिर एक नई बहस को जन्म दे दिया है| इस बार उन्होंने ईसाईयों के भगवान जीसस पर सवाल उठाया है| उन्होंने जीसस के कुंवारी माँ से पैदा होने वाले चमत्कारिक कथा पर कहा है कि ना जीसस की माँ कुंवारी थी और ना ही जीसस ईश्वर का बेटा था| मामला उस वक्त उछला जब जैकब मैथ्यू नाम के एक श ख्स ने तसलीमा से पूछा क्या क्रिसमस मनाने में कुछ गलत है? इस सवाल का जबाब देते हुए तसलीमा ने कहा- हाँ मैं झूठे जश्न नहीं मनाती जीसस ईश्वर का बेटा नहीं था|

दरअसल तसलीमा मनुर्भव (मानवताद्) में विश्वास करती है उन्होंने कई मौको पर कहा है कि अंधश्रद्धा  में कोई रूचि नहीं है। यहाँ एक बात अपनी जगह अपना विश्वास बनाती है हमारे शास्त्रों के अनुसार हम सब ईश्वर की संताने है। किन्तु इसका यह कतई मतलब नहीं हैं कि कोई इसे चमत्कारिक रूप से रखकर स्वंय को ईश्वर की संतान कहकर खुद को ईश्वर का बेटा बताकर अंधविष्वास को बढावा दे! बाइबिल के अनुसार ईश्वर ने 6  दिनों में सर्ष्टि का निर्माण किया और सातवें दिन आराम किया। कोई इस बात को 1  प्रतिशत मान भी ले किन्तु यहाँ प्रश्न यह उठता है कि क्या वो आजतक आराम ही कर रहा है क्योंकि इसके आगे का काम बाइबिल में नहीं लिखा। जिसने 6  दिन में ब्रह्मांड की रचना की तो इसके बाद उसने क्या किया? बाइबिल के अनुसार ईसा की माता मरियम गलीलिया प्रांत के नाजरेथ गाँव की रहने वाली थीं। उनकी सगाई दाऊद के राजवंशी यूसुफ नामक बढ़ई से हुई थी। विवाह के पहले ही वह कुँवारी रहते हुए ही ईश्वरीय प्रभाव से गर्भवती हो गईं। ईश्वर की ओर से संकेत पाकर यूसुफ ने उन्हें पत्नी स्वरूप ग्रहण किया। इस प्रकार जनता ईसा की अलौकिक उत्पत्ति से अनभिज्ञ रही।

संत ईसा की जीवनी (The Life of Saint Issa) है .पुस्तक में लिखा है ईसा अपना शहर  गलील छोडकर एक काफिले के साथ सिंध होते हुए स्वर्ग यानी कश्मीरगए,धर्म  का ज्ञान प्राप्त  किया और यहा संस्कृत और पाली भाषा भी सीखी यही नही ईसा मसीह ने संस्कृत में अपना  नाम ईसा रख लिया था जो यजुर्वेद  के चालीसवें अध्याय के पहले  मंत्र ईशावास्यमितयस्य से   लिया  गया  है नोतोविच ने अपनी  किताब  में ईसा  के बारे में जो महत्त्वपूर्ण जानकारी  दी  है  उसके कुछ अंश दिए  जा रहे  हैं

भारत के पंडितों ने उनका आदर से स्वागत किया, वेदों की शिक्षा देने के साथ संस्कृत भी सिखायी पंडितों ने बताया कि वैदिक ज्ञान से सभी दुर्गुणों को दूर करके आत्मशुद्धि कैसे हो सकती है फिर ईसा राजग्रह होते हुए बनारस चले गए और वहीँ पर छह साल रह कर ज्ञान  प्राप्त करते रहे और जब  ईसा मसीह वैदिक धर्म का ज्ञान प्राप्त कर चुके थे तो उनकी  आयु  29 साल हो गयी थी इसलिए वह यह ज्ञान अपने लोगों तक देने के लिए वापिस येरुशलम लौट    गए जहाँ कुछ ही महीनों के बाद यहूदियों ने उनपर झूठे आरोप लगा लगा कर क्रूस पर चढवा    दिया  था  क्योंकि ईसा मनुष्य को  ईश्वर का पुत्र कहते थे इसके बाद ईसाईयों के भगवान जीसस का पुनर्जन्म होता है। परंतु प्रश्न यह है कि इस पुनर्जन्मत के बाद दोबारा वे कहां गायब हो गये। ईसाइयत इसके बारे में बिलकुल मौन है। कि इसके बाद वे कहां चले गए और उनकी स्वायभाविक मृत्यु कब हुई। यह प्रश्न आज भी दफ़न है क्योकि जीसस को यदि भगवान बनाना था तो उसे मरना ही होगा। नहीं तो ईसाइयत ही मर जाती। क्यों कि समस्त ईसाइयत उनके पुनर्जन्म पर निर्भर करती है। जीसस पुन जीवित होते है और यही चमत्काकर बन जाता है। यही सोचकर यहूदियों ने सीधे साधे ईसा को भगवान बना दिया यही होता आया है सब धर्मो में यहाँ जो भी मर जाता है वो ही भगवान हो जाता है …..राजीव चौधरी

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