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अफजल नहीं ? कलाम निकालो….

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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एक कहावत है क्यों अंधे को न्योता दो क्यूँ दो को बुलाओं माफ़ करना आपको यह व्यंग लग सकता है| किन्तु मै गंभीर हूँ जब परसों जेएनयू के केम्पस से यह नारा सुना कि हर घर से अफजल निकलेगा तुम कितने अफजल मारोंगे| अरे भाई क्यों इस खून को क्यों सड़कों पर बहा रहे हो? एक बार सोचो तो सही आप लोग  हर घर से अफजल ही क्यों निकलते हो! “हर घर कलाम क्यों नहीं निकालते?” बहादुरशाह जफ़र निकालो, अमीर खुसरो, बुल्ले शाह निकालो पर नहीं निकालते, क्योंकि अफजल निकालना आसान है और कलाम निकालना मुश्किल है कलाम निकालने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी, अच्छी सोच देनी पड़ेगी, अच्छे संस्कार देने पड़ेंगे एक मुस्सलम इमान देना पड़ेगा किन्तु अफजल, अजमल, हाफिज, अजहर मसूद निकालने के लिए कुछ नहीं करना बस मजहब पर खतरा दिखाना पड़ता है, हूर और जन्नत की सैर वहां बहती शराब और शबाब की नदियों के काल्पनिक झुनझुने थमाने पड़ते है|

यह कोई नया नारा नहीं ऐसे नारे पाकिस्तान में अक्सर लगते रहे है, बेनजीर की हत्या के बाद सिंधियों के प्रांतीय स्वाभिमान को बड़ी ठेस पहुंची थी। गढ़ी खुदाबख्श में जब बेनजीर को सुपुर्दे खाक किया जा रहा था तो लोग नारे लगा रहे थे, जिये सिंध,  जिये सिंध। तुम कितने भुट्टो मारोगे, हर घर से भुट्टो निकलेगा। अभी तक तो किसी घर से भुट्टो निकला नहीं तो अब हर घर से अफजल कैसे निकलेगा? फिर सुना है जब से यह नारा लगा तब से दिग्गी चाचा घर के बाहर चौखट पर बैठे है कभी कोई आशिक मिजाज अफजल उनकी राय से कुछ राय ना ले ले!! भाई जरूरी नहीं सभी अफजल संसद पर हमला करे? अब यह लोग तो नारा लगा देते है तुम कितने अफजल मारोंगे| पर शायद नारे लगाने वाले लोग एक बात भूल गये कि हर अफजल आतंकी नहीं होता ऐसे भी अफजल है जो इस देश की रक्षा के लिए अपने प्राण गवां देते है शहादत भी वही होती है जो देश के स्वाभिमान के लिए, उसकी रक्षा के लिए दी जाती है, वरना मजहबो के लिऐ तो ना जाने रोज कितने आतंकवादी मरते हैं।

दिल्ली में ही रहता हूँ। कभी सुना था कि देशप्रेमियों का शहर है। होगा, पर आजतक इतने देश प्रेमियों को मैंने एक साथ कभी नहीं देखा। दिल्ली के मुख्यमंत्री को ही ले लो इतने बड़े देशभक्त है एक पैर दादरी में दूसरा हैदराबाद में बाकि शरीर का हिस्सा पोस्टरों में चिपका कर दिल्ली की वीरान सडको पर देखा जा सकता है| किन्तु जब जाति धर्म से जुडी कोई घटना होती है तो अफजल तो निकले न निकले केजरीवाल जरुर निकल जाता है| और उनकी उत्तेजना का स्तर देखकर लगता है कि जैसे ये दिल्ली की नहीं वाशिंगटन की सरकार पर हमला बोलने जा रहे हो।

सभी के सभी देशप्रेमी पार्टियों में बँटे हुए हैं। कल एक बुजुर्ग वाममार्गी देशभक्त मिले दोनों हाथ दिवार से सटाए दीवार पर मूत रहे थे| सन 42 से देश बचाता-बचाता यहाँ तक पहुंचा था बडबडाते बोल रहा था राम पर इंकार है बाकि सब स्वीकार है मैने कहा चाचा उम्र हो गयी अब क्या राम क्या रहीम निकल लो देश को बेवकूफ बनाकर बहुत रोटी तोड़ी अब क्यों दीवारों की सीलन बढ़ाकर उस पर चीटे बुला रहे हो| किन्तु मित्रो यह इक्कीसवीं शताब्दी है। अब देशभक्त होना पहले की तरह आसान नहीं रह गया। असके लिए सबसे पहले देश पर कब्जा करना पड़ता है। जब कांगेस सत्ता में थी देशभक्त थी जब अफजल को फांसी हुई थी उस समय जेएनयू में शायद कोई धरना प्रदर्शन हुआ हो? किन्तु आज इस मुद्दे पर जिस तरह कांगेस व् अन्य तथाकथित सेकुलर दल मौनी अमावस्या मना रहे है| उसे देखकर लगता देश की चिंता की बजाय यह दल अपने वोट बेंक की चिंता में डूबे है| क्या जाति धर्म से ऊपर उठकर देश के प्रति निष्ठा जाहिर करना भी इन लोगों को नागवार गुजरता है अफजल गेंग अपना गुस्सा भाजपा पर उतार रहा है| क्या अफजल को फांसी बीजेपी आरएसएस ने दी थी या देश के संविधान ने?…लेखक राजीव चौधरी

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