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यह कैसी राष्ट्रभक्ति है?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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जेएनयू मामले में धडाधड गिरफ्तारी होनी शुरू हो गयी छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया लाल गिरफ्तार कर लिया गया राष्ट्रभक्त लोगों के लिए यह शुभ संकेत जैसा है, किन्तु तथाकथित सेक्युलर दलों के लिए यह खबर खिचड़ी में घी डालने जैसी है| लगे हाथों क्यों ना इस पर राजनीति कर ली जाये परन्तु आज मेरा प्रश्न दूसरा है जो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों की मंशा पर सवाल उठाता है| देशद्रोह और आतंकवाद जैसे मामलों में जब कोई आतंकी गिरफ्तार किया जाता है,और  यदि वह मुस्लिम समुदाय से हुआ तो भारत के वाम और सेकुलर कहे जाने वाले दल मुस्लिम वोट पाने के लिए अपराधी की गिरफ्तारी का विरोध करते दिखाई देते है| उसकी गिरफ्तारी को नाजायज बताते है| स्मरण रहे सिर्फ वोट के लिए किया जाता है| क्या उनकी नजर में भारत का सारा मुस्लिम समुदाय आतंकवादी है? या वो देशद्रोही है? जो आप उसकी सात्वना पाने के लिए आपराधिक तत्वों को धर्म से जोड़कर बचाव करने का नाटक कर रहे है! हर एक अपराध को धर्म से जोड़कर राजनीति करने वाले लोग भारत के मुस्लिमों को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते आखिर यह लोग इन कृत्यों का समर्थन कर क्या साबित करने चाहते है!! यही कि भारत में इस्लाम के रखवाले हम है|

यदि पुरे विश्व में इस्लाम का चेहरा देखा जाये तो भारत का मुसलमान सबसे उदार, राष्ट्रभक्त देश प्रेम की भावना में देखा जाये तो उसका दिल अपने वतन के लिए पहले धडकता है| जब कहीं आतंकी घटना होती है वो अख़बार में पहले यह देखता है कि हमला करने वाले कौन थे यदि वो मुस्लिम हो तो सबसे पहले निंदा करता है| किन्तु उसे आश्चर्य तब होता है जब गोल टोपी लगाकर यह वाम और सेकुलरवादी लोग उस घटना का समर्थन करते दिखाई देते है| तब वह जरुर सोचता होगा कि मेरे इस्लाम को बदनाम कौन कर रहा है| जेएनयू में जो कुछ हुआ उसका संचालन कर रहा उमर खालिद खुलेआम पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगा रहा था| लड़कर लेंगे आजादी, छीनकर कर लेंगे आजादी, तुम कितने अफजल मारोंगे, हर घर से अफजल निकलेगा आदि देश विरोधी सविंधान विरोधी नारे वहां लगाये जा रहे थे| जिसकी सभी राजनैतिक दलों ने दिखावा ही सही पर निंदा की किन्तु अब वो ही राजनैतिक दल उमर खालिद और छात्र संघ नेता की गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे है| बस मेरा इनसे एक सवाल है| क्या देशद्रोही को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए?

एक दिन में दो घटना हुई थी एक तो प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया में दूसरी जेएनयू के केम्पस में तब मुझसे एक मित्र ने पूछा था ये पढने वाले छात्र ऐसा क्यों कर रहे है इस सारे मंजर के पीछे कौन हो सकता है? मैने तब भी कहा था एक दो की गिरफ्तारी होने दो इनके आका खुद बिल से बाहर आ जायेंगे| अब जैसे ही धरपकड़ शुरू हुई तो माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट कर गिरफ्तारी की इमरजेंसी जैसे हालात से तुलना की। अजीब है ना घटना की निंदा और गिरफ्तारी का विरोध सविधान के साथ इससे बड़ा मजाक क्या होगा? अब इस मामले में अलगाववादी नेता भी कूद पड़े हैं। यासीन मलिक ने भी इस गिरफ्तारी को नाजायज ठहराया|  मौका था दस्तूर था भला केजरीवाल जी क्यों पीछे रहते केजरीवाल ने अपने ट्विटर पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है कि मोदी सरकार निर्दोष छात्रों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है और मोदी सरकार को छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया लाल की गिरफ्तारी भारी पड़ सकती है| किसी एक नेता ने यह नहीं कहा कि भारत सरकार जीएनयू में पैसा खर्च करती है छात्रों को राजनीति की बजाय अपनी शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए| शायद इसी कारण उच्च शिक्षा की आड़ मे जेएनयू वामपंथी राजनीती का अड्डा बन कर रह गया है और देश विरोधी राजनीती यहाँ का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कार्य बन गया है राजनेताओ के तवे के नीचे छात्र, उनकी शिक्षा, उनका भविष्य जलाया  जा रहा है ताकि इनकी रोटी सिकती रहे| गिरफ़्तारी के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर तमाम टीवी चैनल आज सरकार की मंशा पर प्रश्न खड़े कर रहे| क्या कोई बता सकता है इनके लिए राजनीति प्रथम है या राष्ट्रहित? क्यों ये लोग धर्म के बहाने जाति के बहाने आतंकवाद आदि का पक्ष कुछ इस तरह लेते है जैसे अपराध, आतंकवाद, राष्ट्रद्रोह हर एक मुस्लिम को निसंकोच स्वीकार हो!! इशरतजहाँ, याकूब मेनन, अफजलगुरु, मकबूल भट्ट, आदि सविंधान की नजर में आतंकी थे फिर यह लोग क्यों इन्हें इस्लाम से जोड़कर भारत के भोले-भाले मुस्लिम को भ्रमित कर रहे है| जब भी कोई ऊँगली आतंक की ओर उठती ये लोग उस ऊँगली को इस्लाम की ओर बताने में देर नहीं करते| आखिर क्यों क्या वोट की राजनीति के लिए धर्म को बीच में लाना जरूरी हो गया है? एक कहावत है कभी भी वहाँ मत देखो जहाँ आप गिरे. वहाँ देखो जहाँ से आप फिसले..ताकि फिर बचा जा सके|| लेखक राजीव चौधरी

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